उत्तरदायित्वों के साथ जीवन का गहरा सम्बन्ध है. ये जीवन की गतिशीलता और सफलता के आधार हैं. धरती का हर जीव इनका बोझ लेकर जन्म लेता है, जिसे न केवल अपने, वरन समाज के कल्याण के लिए उतरना पड़ता है. अन्यथा जीवन खुद के लिए ही बोझा बन जाता है. दूसरों को कर्तव्य बोध करने से पहले खुद की तरफ देखना चाहिए.
अपने परिपोषण का दायित्व तो पशु-पक्षी भी कर लेता है, परन्तु जीवों के विकाश क्रम में मानव बौद्धिक रूप से सायद सवार्धिक विकशित प्राणी है. अतः जीवन का उद्देश्य महान होने से उसके दायुत्व भी गुरुत्तर हैं. किन्तु मानव सेवा से ज्यादा कोई दायुत्व नहीं, जिसका निर्वहन हर मानव का प्रथम कर्तव्य है. परन्तु इसके लिए दायित्व बोध जरुरी है. आजकल सभी कोई भी पद प्रतिष्ठा वेझिझक ले लेता है, परन्तु उस पद से जुड़ा दायित्व को अक्सर भूल जाता है या प्राथमिकता में नहीं रहता है. दायित्वों का विस्मरण एक सामाजिक विकृति, जो घनघोर बीमारी की तरह फैल रहा है, अपने साथ समाज एवं देश को भी अपंग बना देती है, जब एक सामान्य व्यक्ति अपने दायित्वों को विस्मृत कर देता है तो इससे होने वाली आत्मिक एवं सामाजिक क्षति अनुमान से भी कही ज्यादा होता है. वस्तुतः मानव जीवन “स्व” के लिए नहीं “पर” के लिए वना है. परार्थ भाव से किया गया जीवन यापन “स्व”की पूर्ति स्वयं कर लेता है.
दायित्व बोध समजिक एवं राष्ट्रिय उन्नयन का सर्वश्रेष्ठ मार्ग है. श्रीरामजी का चरित्र दायुत्व बोध का सर्वोत्तम उदहारण है. वह कहते हैं कि देव दुर्लभ मानव शरीर पाकर भी जिसे अपने दायित्व का बोध न हो, वह आत्महंता की गति को प्राप्त करता है. अतः आइए, हम भी अपने अंतर्मन में राष्ट्र एवं समाज के लिए दायित्व बोध जागृत करें, तथा जो भी रास्ते में भटक गए हैं, उन्हें भी सही राह पर लाने की चेष्टा करें. आइए! फिर से नई भारत बनाएं. फिर से हम विश्व गुरु वनें.
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